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उपनिषद् - विकिपीडिया
उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं। ये वैदिक वाङ्मय के अभिन्न भाग हैं। इनमें परमेश्वर, परमात्मा-ब्रह्म और आत्मा के स्वभाव और सम्बन्ध का बहुत ही दार्शनिक और ज्ञानपूर्वक वर्णन दिया गया है।
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मुख्य उपनिषद - विकिपीडिया
मुख्य उपनिषद् 11 माने जाते हैं,जिनके नाम इस प्रकार हैंः-- 1. ईशावास्योपनिषद्, 2. केनोपनिषद् 3. कठोपनिषद् 4. प्रश्नोपनिषद्, 5. मुण्डकोपनिषद्, 6. माण्डूक्योपनिषद्, 7. ऐतरेयोपनिषद्, 8. तैत्तरीयोपनिषद्, 9. श्वेताश्वतरोपनिषद्, 10. बृहदारण्यकोपनिषद्, और--11. छान्दोग्योपनिषद्। आदि शंकरा
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उपनिषद कितने है? - Quora
उपनिषदों की कोई निश्चित संख्या अभी तक ज्ञात नहि हो पाई है ।कुछ विद्वान इनकी संख्या १०८ मानते हैं तो कुछ लोग २०० मानते हैं।किन्तु मुख्य रुप से उपनिषदों की संख्या १० है।- ईश-केन- कठ- प्रश्न -मुण्ड- मांडूक्य- तैत्तिरीय। ऐतरेय -च-छान्दोग्य बृहदारण्यक ...
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बृहदारण्यक उपनिषद् - विकिपीडिया
बृहदारण्यक उपनिषत् शुक्ल यजुर्वेद से जुड़ा एक उपनिषद है। अद्वैत वेदांत और संन्यासनिष्ठा का प्रतिपादक है। उपनिषदों में सर्वाधिक बृहदाकार इसके ६ अध्याय, ४७ ब्राह्मण और प्रलम्बित ४३५ पदों का शांति पाठ 'ऊँ पूर्णमद:' इत्यादि है I
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तैत्तिरीयोपनिषद - विकिपीडिया
तैत्तिरीयोपनिषद कृष्ण यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण प्राचीनतम दस उपनिषदों में से एक है। यह शिक्षावल्ली, ब्रह्मानंदवल्ली और भृगुवल्ली इन तीन खंडों में विभक्त है - कुल ५३ मंत्र हैं जो ४० अनुवाकों में व्यवस्थित है।
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ऐतरेय उपनिषद - विकिपीडिया
ऐतरेय उपनिषद एक शुक्ल ऋग्वेदीय उपनिषद है। ऋग्वेदीय ऐतरेय आरण्यक के अन्तर्गत द्वितीय आरण्यक के अध्याय 4, 5 और 6. का नाम ऐतरेयोपनिषद् है। यह उपनिषद् ब्रह्मविद्याप्रधान है।
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ब्राह्मण और श्रमण परम्परा
ब्राह्मण और श्रमण परम्परा
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उपनिषद-काल : ज्ञान के धरातल पर वेदों को मिली मात | फॉरवर्ड प्रेस
लेखक प्रेमकुमार मणि बता रहे हैं कि 1000-800 ईसापूर्व के बीच उपनिषद वेदांत के रूप में सामने आए। वे यह भी बता रहे हैं कि कैसे ज्ञान के धरातल पर उपनिषदों ने वेदों को पछाड़ा। साथ ही यह भी कि उपनिषदों म…
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श्रमण परंपरा: बौद्ध और जैन धर्म में समानताएं और मतभेद
श्रमण परम्परा से तात्पर्य उन महत्वपूर्ण प्रतिकात्मक धारणाओं तथा व्यवहार से है ,जिसे विभिन्न समाज तथा समूह ने आग
https://rampur.prarang.in/posts/2735/Shaman-tradition-Similarities-and-differences-in-Buddhism-and-Jainism
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संगम काल : प्राचीन भारत का इतिहास
संगम काल संगम से अभिप्राय तमिल कवियों के संगम या सम्मलेन से है जो संभवतः किन्हीं प्रमुखों या राजाओं के संरक्षण में ही आयोजित होता था। आठवीं सदी ई. में तीन संगमों का वर्णन मिलता है। पाण्ड्य राजाओं द्वारा इन संगमों को शाही संरक्षण प्रदान किया गया। माना जाता है कि प्रथम संगम मदुरै में…
https://gscentral.wordpress.com/2020/04/25/संगम-काल-प्राचीन-भारत-का-इ/