हड्डियों की विकृतियाँ मेरुदण्ड या नसों पर दबाव डालती हैं, तो मेरुदण्ड की बीमारियाँ अक्सर पीड़ादायक होती हैं। इनसे गतिविधि भी बाधित होती है। बीमारी के अनुसार उपचार में अंतर होता है, किंतु कभी-कभी सर्जरी और पीठ के ब्रेसेज़ की आवश्यकता होती है।
मेरुवक्रता या स्कोलिओसिस (scoliosis) के रोग के कारण मेरुदण्ड सीधी न रहकर किसी एक तरफ झुक जाती है। इससे ज्यादातर छाती और पीठ के नीचे के हिस्से प्रभावित होते हैं। इसे 'रीढ़ वक्रता' या 'पार्श्वकुब्जता' भी कहते हैं।
मेरुदण्ड में जलन Spinal Irrition or Spinal Neurashtenia इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है जिसके कारण कभी-कभी दर्द होने लगता है और उसमें जलन भी होती है। Spinal Irrition
स्पौंडीलोसिस बीमारी मुख्यतया रीढ़ की हड्डी में अकड़न और डीजैनरेशन से होती है. यह बीमारी वर्टिब्रा या कशेरुका के बीच के कुशन यानी इंटरवर्टिबल डिस्क में कैल्शियम के डीजैनरेशन या किसी चोट के कारण होती है.
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस एक आयु सम्बन्धी अपक्षयी विकार है जिसमें गर्दन (सर्वाइकल वर्टिब्रा-गर्दन के निकट मेरुदंड का हिस्सा) के तंतुओं और हड्डियों का असामान्य घिसाव होता है।.
यह आसन करना कठिन है इसलिए इसे उग्रासन कहा जाता है । उग्र का अर्थ है शिव । भगवान शिव संहारकत्र्ता हैं अतः उग्र या भयंकर हैं । शिवसंहिता में भगवान शिव ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए कहा है : ‘‘यह आसन सर्वश्रेष्ठ आसन है । इसको प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखें ।
मेरुवक्रता या स्कोलिओसिस (scoliosis) के रोग के कारण मेरुदण्ड सीधी न रहकर किसी एक तरफ झुक जाती है। इससे ज्यादातर छाती और पीठ के नीचे के हिस्से प्रभावित होते हैं। इसे 'रीढ़ वक्रता' या 'पार्श्वकुब्जता' भी कहते हैं।
मेरुदण्ड में जलन Spinal Irrition or Spinal Neurashtenia इस रोग से पीड़ित रोगी के शरीर में बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है जिसके कारण कभी-कभी दर्द होने लगता है और उसमें जलन भी होती है। Spinal Irrition
स्पौंडीलोसिस बीमारी मुख्यतया रीढ़ की हड्डी में अकड़न और डीजैनरेशन से होती है. यह बीमारी वर्टिब्रा या कशेरुका के बीच के कुशन यानी इंटरवर्टिबल डिस्क में कैल्शियम के डीजैनरेशन या किसी चोट के कारण होती है.
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस एक आयु सम्बन्धी अपक्षयी विकार है जिसमें गर्दन (सर्वाइकल वर्टिब्रा-गर्दन के निकट मेरुदंड का हिस्सा) के तंतुओं और हड्डियों का असामान्य घिसाव होता है।.
यह आसन करना कठिन है इसलिए इसे उग्रासन कहा जाता है । उग्र का अर्थ है शिव । भगवान शिव संहारकत्र्ता हैं अतः उग्र या भयंकर हैं । शिवसंहिता में भगवान शिव ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए कहा है : ‘‘यह आसन सर्वश्रेष्ठ आसन है । इसको प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखें ।